वीडियो जानकारी: 10.03.2017, शब्दयोग सत्संग, अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा<br /><br />प्रसंग: <br /><br />यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च य: |<br />हर्षमर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो य: स च मे प्रिय: ||<br />भावार्थ - जिससे कोई भी प्राणी उद्विग्न नहीं होता<br />और जो स्वयं भी किसी से उद्विग्न नहीं होता<br />तथा जो हर्ष, ईर्ष्या, भय और उद्वेग से मुक्त है,<br />वह मुझको प्रिय है।<br />~ श्रीमद्भागवद्गीता अध्याय १२ श्लोक १५<br /><br />~ उपर्युक्त श्लोक में उद्वेग का क्या अर्थ है?<br />~ वह कौन है जो उद्विग्न नहीं होता और जिससे कोई भी उद्विग्न नहीं होता?<br />~ श्री कृष्ण को कौन प्रिय है?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~